#बाज़
अपनी पहचान बनाने की चाहत में एक छोटे से दायरे से खुले आसमान में आकर जल्दी ही उसके पंखों ने उडान भरना सीख लिया था, मगर साथी पक्षियों में ही छिपे बाज़ को पहचानने में धोखा खा गयी थी वह।
'आई सी यु' में पड़ी अधखुली आँखें माँ की ओर देख, बोल रही थी। "माँ, ठीक कहती थी तुम। ऊँची उडान के लिये पंखों की परवाज़ ही नहीं, बहती हवा के बदलते रूख़ को देखना और उससे ख़ुद को बचाना भी आना चाहिये।”
विरेंदर 'वीर' मेहता