** कविता **
** विषय .पराधीन #
डरते है कही बिमार ,हम न पड़ जायें ।
महफिलों में जायें तो ,कहीं रोग न लग जायें ।।
खुली हवा में श्वास लेने ,से धबराने लग गये ।
प्रकृति की गोदी में ,खेलने से कतराने लगे ।।
दोस्तों के गले मिलने ,को तरसने लगे ।
दोस्तो के साथ बैठे ,जमाना हो गया ।।
इस धुंटन से अब ,हम धबराने लगे ।
अपनों से हम ,जुदा हो गये ।।
कोरोना ने हमारा ,सुख चैन लुट लिया ।
कोरोना हमारा खुशीयों ,का खजाना खा गया ।।
दोस्त भी धर ,आने से डरने लगे ।
सब को हम शंका की ,दृष्टि से देखने लगे ।।
खिड़की ,दरवाजे से ,झांक कर देखने लगे ।
गलीयों ,चौहारे ,बच्चों ,की अटखेलियों ,से मर्हुम हो गयी ।।
अब हम अपना चेहरा ,नकाब से ढ़कने लगे ।
हम पशु तुल्य ,पराधीन से हो गये ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।