#आज की प्रतियोगिता "
# विषय .वास्तविक "
# छंदमुक्त कविता ***
तेरे से आँख लडाना ,वास्तविक था ।
तेरे पर दिल लुटाना ,वास्तविक था ।।
तेरा प्यार पाना ,वास्तविक था ।
तेरी कजरारी नयनों में बसना ,वास्तविक था ।।
तेरे दिल को एहसास दिलाना ,वास्तविक था ।
वास्तविक प्रेम ही ,अधिक टिकाऊँ होता ।।
बनावटी प्रेम दो चार दिन ,में फुर्र हो जाता ।
प्रेम तो राधाकृष्ण की ,तरह होना चाहिए ।।
प्रेम तो हीर रांझा की ,तरह होना चाहिए ।
प्रेम में आँख रोती है ,दिल तड़पता है ।।
वास्तविक प्रेम तो ,समर्पण माँगता है ।
प्रेम करना कोई ,बच्चों का खेल नहीं यारों ।।
प्रेम सच्चा हो तो ,ईश्वर भी दौडा चला आता है ।
प्रेम करना सच्ची ,इबादत करना ही है ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।