डरते थे कभी तन्हाई से बीमार न पड़ जायें,
अब महफ़िलो से खौफ है कि रोग न ले आये।
ना जाने कैसी गुस्ताखी हम कर गये,
कि चेहरे पर नक़ाब लगाने पड़ गये।
इस घुटन से कब निकल पाएँगे,
खुली हवा में साँस कब ले पाएँगे।
उन्हें शिकायत है कि घर पर नहीं मिलते है,
अब हैं तो वो घर के पास भी नहीं फटकते है।
कोरोना हमारा कीमती खजाना ले गया,
दोस्तों के साथ बैठे जैसे ज़माना हो गया।
सभी दोस्तों को समर्पित । 🌹🌹