अनुनय विनय बहुत की उससे,
दे दें अंश हमारा।
देने को कुछ हुआ न राज़ी,
लोभ मोह का मारा।
जड़-बुद्धि से विनय, कुटिल से प्रीति,
नहीं फलदाई।
युद्ध अवश्यंभावी है अब,
कुल पर विपदा छाई।
केशव पहले विनय पूर्वक समझाते
कौरव को।
नहीं मानता हठी भोगने को तत्पर,
रौरव को।।
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