बचपन गया अगर हाथों से
लौट नहीं आता है ।
बरसाती पानी पर लोट
लगाओ जितना
कभी नहीं भर पायेगा
मन मौंजें उतना
जेबें रह जायेंगी खाली
माटी से भी
जर्जर हो जायेंगी खुशियाँ
काठी से भी
ठहरे हुए जलाशय में तन
गीत कहाँ गाता है।
दादी की बातें,बातों में
राजा-रानी
धुँधलाती परियों की थी
जो सुनी कहानी
दिन भौंरे-सा भुनभुन करता
रहता अब भी
जीवन की कलियाँ रहती हैं
सहमी तब भी
सूख चुका हो जो उपवन
तितली को, कब भाता है।।
कल्पना मनोरमा
26.5.2020