जब कभी मैं कुछ तन्हा सा होता हूं
होकर खड़ा अकेले में ये प्रश्न करता हूं
दौलत मिली शोहरत मिली और मिला सम्मान
पर क्या मुझे ख्वाहिश थी इसी दौलत और शोहरत की
और क्या ये सम्मान मुझे सम्पूर्ण करता है
जब कभी मैं कुछ तन्हा सा होता हूं
होकर खड़ा अकेले में ये प्रश्न करता हूं
ना चाहिए मेरे खुदा मुझे ये दौलत ये शोहरत
ले ले तू मुझसे ये मेरा सम्मान
बस तू मुझको देता जा मेरा सुकून मेरा प्यार