#तलाक़
शादी के बाद पिता ने दिया फ़ैसले का हक़
कि हमारे पास आना है या पति साथ जाना है
रोज़ की लड़ाई से तुमको नहीं घबराना है
हम साथ हैं, तुम्हारे लिए सब कर जाएंगे
नहीं बनी बात तो तुमको अपने पास ले आएंगे
ताउम्र तुमको हम अपने घर ही खिलाएंगे
पर उस जल्लाद के पास वापस नहीं ले जाएंगे
शादी के बाद पिता ने दिया फ़ैसले का हक़
क्या होता जो ये हक़ पहले होता
नहीं करनी शादी इससे, तो बिल्कुल नहीं कराएंगे
तेरी ख़ुशियों में ही अपनी खुशियां मनाएंगे
नहीं, तब बात तो अपनी जिद की थी
समाज की, इज़्ज़त की थी
बेटी की ख़ुशियों का कहाँ मोल था
पर दामाद बहुत अनमोल था
आज वही दामाद है, कहा जिसको जल्लाद है
क्या ये बदलाव शादी के बाद है
या था पहले भी, बस आँखों का नज़रंदाज़ है
जाँच परख भी तो की होगी
पर वो भी तो निकली खोखली
मन में छिपे थे कई राज़
इसीलिए उसका था वो अंदाज़