एक छोटा सी कोशिश वास्तविक शून्य को समझने की...
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घर में पुत्री के आगमन पर भी मां का आंचल रह गया शून्य....
(हाय रे कुंठित सोच).....!
पुत्र रत्न की जब मनोकामना पूर्ण हुई तो पूरा हो गया वह शून्य.
(वाह री हास्यास्पद सोच)....!!
दोनों का लालन पालन हुआ पर ममता की छांव से बिटिया का हिस्सा रह गया शून्य.... पुत्र पे सारा प्यार लुटाया ना रहने दिया कोई शून्य.......
उच्च शिक्षा उसको दिलवाई, वहीं विदेश में नौकरी पाई, कमाई में बढ़ गयें ढेर सारे शून्य.....
यहाँ बेटी🙎 ने भी नौकरी पाई पर कमाई में ना लग पाये भाई जितने शून्य......!!!!!!
फिर बेटे ने माता पिता को त्यागा हाय रे हमारा जीवन अभागा, संस्कार क्यों रह गये शून्य.....
तब बिटिया बनी जीवन का आधार, ना होने दिया माता पिता को लाचार, पूरे कर दिए सारे शून्य.....!!!!!!
माता पिता का आशीष अब पाया, पहली बार दोनों ने उसके माथे पर हाथ फिराया, बोले बुध्दि हमारी हो गई थी शून्य....
सोचा आज भारी पड़ा है उस अशून्य के ऊपर हमारे घर पहले पधारा तुम्हारे जैसा पावन शून्य.,.......!!!!!!!!
सत्येंद्र
मौलिक और स्वरचित
#शून्य