उँगलियों का पोर-पोर
दर्द के एहसास से
गुज़र रहा है आज
कल रात कुछ शब्दों ने
झगड़ा किया
तू तू मैं मैं हुई
अपनेपन की सारी
दीवारें ढह गईं !!
...
बिखरीं ईंटों ने
एक होने से इंकार कर दिया
रेत सीमेंट का कोई
वजूद ना रहा
पानी सूख गया
आँखों ने ये मंजर देखा है जबसे
पलकें सिर्फ #शून्य में
निहार रहीं हैं !!!
© सीमा 'सदा'