मख़्तबर दर्द का कुछ ख़याल नही है
एक तरफ मैं कहीं, एक तरफ दिल कहीं
एहसास की ज़मीन पे क्यूँ धुआँ उठ रहा है..!
जल रहा दिल मेरा, क्यूँ पता कुछ नही..!
क्यूँ खयालों में कुछ बर्फ़ सी गिर रही..!
रेत की ख़्वाहिशों में नमी भर रही
मुसल्सल नज़र बरसती रही
तरसते हैं हम भीगे बरसात में
इक मुलाक़ात में, बात ही बात में
उनका यूँ मुस्कुराना ग़ज़ब हो गया
कल तलक वो जो मेरे ख़यालों में थे
रूबरू उनका आना ग़ज़ब हो गया