ऊँ... तात्विक विचारधारा...वह यह उद्गीथ ऊँकार हैं ,जो भूत आदि के उत्तरोत्तर रसो में अतिशय रस हैं, अर्थात् रसोतम हैं। परमात्मा का प्रतीक होने के कारण परम (उत्कृष्ट)हैं । परार्ध हैं।तात्पर्य यह है कि परमात्मा के समान उपासनीय होने के कारण परमात्मा का अवलम्बन हैं।तथा वह जो उद्गीथ हैं ,पृथ्वी आदि रसोकी गणना मे आठवांँ हैं।"गीता"