सोमवार पे शुरू हुआ इत्ज़ार इतवार पे खतम होता है
बस यु ही ज़िंदगी खतम होती है...
हालाकी...
इतवार का इत्ज़ार भी वेसे, सिर्फ़ इसी कारणवश है के आगे छे दिनो कि लम्बी कतार है...
एक इतवार
एक इतवार के भि कितने हिस्से !
हर किरदार के अलग अलग किस्से!
ओर उन किस्सौ मे कटती-बटती जिंदगी...! जुड़ती-टूटती जिंदगी
PS: internet na chal ne pe raat ko jaldi so jana chahiye else dimag esi lawari karne lagta hai