English Quote in Poem by Dr.Divya

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इंतज़ार तो बस खतम ही होने वाला था …

हमने ही और बढाया है उसको ।

क्या सोच के हमने ही खिंची है इस लंबी लकीर को।

सुकून पाना था या गवाना था इस इंतज़ार मैं ।

पहले भी हर एक लम्हे को गिनते थे उनकी याद मैं ।

अब भी यही तो करना है ।

तो फिर क्यों नामुमकिन सा लग रहा है ये अब ?

क्यों दिल अपने ही बस में नही रहा है अब ?

थोड़ा और इंतज़ार करने मैं अब उसका क्या खो रहा है ।

तसल्ली तो हम यही दे रहे है उसे की ...

बस थोड़े और लम्हे को गिनकर काटने है ।

बस फिर तो इंतज़ार खत्म ही होने वाला है।

सोच रही हु मैं खुदसे ......
" ये दिलासा किसे दे रही हु ?"

"खुदसे ही खुद को समजा रही हु !!"
Dr.Divya

English Poem by Dr.Divya : 111327459
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