मेरा गाँव वीरान पड़ा मर रहा है कोई तो इलाज करो ,
कामयाबी का नशा कितना असरदार है कोई तो हिसाब करो ,
वो गाँव की कच्ची सड़के कच्ची कच्ची सिसक रही है ,
शहरो की शानदार सड़को पे इंसानियत आलिशान मौत मर रही है ,
गाँव में जिंदादिल बुढ़ापा आज भी जिंदा वैसा है ,
मेरे शहर में घर घर मे जवानी मर रही है ,
पैसा कमाने निकला था बेटा राह पकड़ शहर की ,
सुना था शहर मायाजाल है , कमबख्त कमाई उसे गाँव आने से रोक रही है ,
हर इतवार घूमता है वो - मिलता , जुलता , उलझता है
जालिम कड़ी धूप भी माँ को बेटे से मिलने से रोक रही है ,
महँगाई का जमाना है , मेरे घर है शख्स उसका मुझ पे ताना है ,
सिर्फ एक लब्ज में बतादो ' हाँ ' , मेरी बीवी गाँव जाने से रोक रही है ,
कमाई उसके जाने के बाद भी होती रहेगी , जिंदगी यूँही बेहाल चलती रहेगी ,
कभी गौर करना फुर्सत में यार ; माँ बूढ़ी नही हो रही ,माँ मर रही है....
मेरा गाँव वीरान पड़ा मर रहा है कोई तो इलाज करो ,
कामयाबी का नशा कितना असरदार है कोई अब तो हिसाब करो ,
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©kirdar