My Present Scenario Poem ...!!!
तेरे ख्याल पर ही खत्म हो रहा है ये साल
तेरी ही ख्वाहिश पर शुरु होगा नया साल
उम्मीदों के दरीचे ख़्वाहिशों के सलीक़े है
है ज़ख़्मी हर शख़्स हर इन्सान हर रुँह भी
मासूम बच्चियाँ और ज़ुल्म-ओ-सितम से
मरनेवालों की तादाद तो यहाँ नहीं है कम
ख़ुद ही की पहचान-ओ-सनाख़त बनी है
आज हर इन्सान हर मासूम जान की दुश्मन
खानें के है फ़ाके उस पर तपतीश-ए-जिस्म
क़बीला क़ाफ़िला ख़ानदानी बात है पुरानी
जीते जी हर बशरको नयी पहचान है बनानी
काग़ज़ी चंद टुकड़ोंसे वंशकी लकीर जतानी
खोखले ख़्याल खोखले चौँचलो से दोस्ताना
पुरानी तेहज़ीब पुराने वक़्त की बात भुलानी
नये साल में नई पहचान है हर बंदेको बनानी
ग़लती-से गर खौं दिए सनाख़्ती पत्रिकाएँ
सज़ा-ए-आफ़ता मुजरिम-सी है जीदगानी।
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