"बुत या औरत"
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है खड़ी पलके बिछाए
कब से इंतज़ार में वो
हैरान हूँ मैं भी बहुत
उसकी शिद्दत को देख कर ।।
देखना तुम ग़ौर से
वो नैन सुंदर कह रहें
है समर्पित तुम पर वो
तुम्हारी मुहब्बत को देख कर ।।
लिए मन में कोई आस
भर रही वो हर साँस
लौट आना जल्दी घर
उसकी चाहत को देख कर ।।
ना समझो वो बाँध रही
किसी मायाजाल में तुम्हे
वो गयी है सहम ज़रा
रिश्तों की तिजारत को देख कर ।।
कोई तो बात होगी जरूर
उसकी दुआओं में जानिए
झुक गया खुदा भी जो
उसकी इबादत को देख कर ।।
क्या कहूँ इससे ज़ियादा
हर चाह मेरी ये कह रही
खुद बुत हो गयी हूँ मैं
आज इस मूरत को देख कर ।।