बहुत हल्ला मचाता है घरों में झांकने वाला ।
ज़मीं टेढ़ी बताता है ज़मीं पर नाचने वाला ।।
अभी तो रंग बदला है अभी वह आग उगलेगा ।
बड़ा ही साफ़ दिखता है मुल्क को बाँटने वाला।।
उसे बहसत से ज्यादा और कुछ आता नही शायद।
नमाज़ी रोज बनता है वो थूक कर चाटने वाला ।।
किया करता है अक्सर छेद जिस पत्तल में खाता है ।
जिसे साधू समझते हो वही है फाँसने वाला ।।
क़दम रखना सम्भलकर तुम ज़मीं पर जिस तरफ गुजरो।
कहीं भी रेंगता होगा सपोला काटने वाला ।।
बना फिरता है साहूकार जो मेहनत नही करता ।
गिना जाता नही इंशां वो माटी फाँकने वाला ।।
गटर को साफ़ करने में गुज़र जाता है मेहनतकश।
मगर खामोश रहता है ये ख़बरें छापने वाला ।।
लुटेरों का महकमों में लँगोटी यार बैठा है।
तभी बचकर निकल जाता है लाशें पाटने वाला ।।
कोई तो है जो मन की बात करता है सुनो पन्ना।
तुम्हें उल्लू समझता है वो डींगें हाँकने वाला ।।
-Panna