अखिल ब्रह्मांड मे रचाया रास,
रासबिहारी रे...
एक गोपी संग एक कान ,
बांके बिहारी रे...
मधुरी मुरली अधर पर नाद ,
राधे राधे मुरारी रे...
डोले त्रिभुवन संग सारा वृंदावन ,
झूमे वनमाली रै...
भूली सुध शान गोपियाँ ,
मरक मरक चितहारी रे...
ठुमका लगाएँ ठाकुर
थै थै थै चक्र धारी रे...
धन्य हुए सब गोपी गोपाल ,पाकर, ,
पुरषोत्तम प्रतिपाली रे...
"गीता"वारि वारि रे तुम पर ,
ब्रीजमोहन बलिहारी रे ।।