"दशहरा की शुभकामनाएं"
आहों में नही हो "श्राप"
ज्ञान में नही हो "सड़ांध"
रिश्तों में नही हो "खटास"
कीर्ति में नही हो "गुमान"
दिल मे नही हो "नफरत"
चेहरे में नही हो "उदासी"
जिंदगी में नही हो "बुराई"
बिश्वास में नही हो "घात"
होंठो में नही हों "शोकगीत"
ब्यवहार में नही हो "कटुता'
आंखों में नही हों "गम के आँसू"
मन मे नही हो जलन की "आग"
विचारों के मीनारों में नही हो "जंग"
रेंकते केकड़े के पाठकों को यही "संदेश"
शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'