"माँ"
गम के हर दौर में ख़ुशी के खूंटा गाड़ती थी माँ।
भूख के हर दौर में खुशी से रोटी बनाती थी माँ।
जन्नत की तरह वो हर पल रहम बरसाती रही-
जीवन की राहों में हर पल फूल बिझाती थी माँ।
हमारी हर जिद पर चाँद से वो तारे लाती रही-
हमारे आंसुओं के हर कतरे को सुखाती थी माँ।
जीवन अगर जहर था हमारे लिए वो पीती रही-
हर वक्त घर मे संस्कार के ध्वज लहराती थी माँ।
अपने ओरों में वो पवित्रता को सहेजती रही-
जिंदगी के हर पहलू में खुशबू फ़ैलाती थी माँ।
रचना:-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'