चुपके से देख मुझे मुस्कूराय तू ,
बिन सुने पढ लेता हर लफ्ज को तू ,
जानता हे हर हाल मेरा; फिर भी क्यूं बने अंजान तू ?
जब ना दिखूं तो धूंधे यहां वहां ,
और जब दिख जाऊं तो दुरसे दीदार करे तू ,
पेहचाने हर अंदाज मेरा; फिर भी क्यूं बने अंजान तू ?
नजरे करे तेरी मोहब्बत का इजहार ,
लेकिन लबो से इकरार नहीं ,
जानता मेरे जवाब को हे; फिर भी क्यूं बने अंजान तू ?