क्या हमारा प्यार समुन्द्र जैसे था?
तुम एक किनारा थी,
और मै एक किनारा था,
बीच में जमाने भर का खारा पानी,
कभी हम मिल ही नहीं पाए,
लोगो ने मंथन कर कर के कितने ही खजाने पाए,
और हम अपने आंसूवो से सिचते रहे,
औरो के मार्ग भी बने पर अपने लिए कभी रास्ता ना ढूंढ पाए।
©krishnakatyayan