अगर ऐसा होता , अगर वैसा होता हम यह करते हम वो करते बस इन सब फेर बदल के बीच में ही हमारी ज़िन्दगी उलझी रहती है । करना तो बहुत कुछ होता है कभी हालात साथ नहीं देते तो कभी किस्मत । पर क्या हमको इन सब का फर्क पड़ता है क्योंकि हम ही जो अपना भाग्य लिखते है और हम ही है जो उसको बिगाड़ते है । तो फिर ईश्वर को दोष क्यो ?। अभी भी देर नहीं हुई अपनी सोई हुई किस्मत को जगाने का और फिर से कुछ कर गुजरने का ।