आशियाना.. ढूँढू.. कही ओर बसेरा ढूँढू.. l
मे मोती.. हु... सागर मे... लहेरे ढूँढू.. l
न रहु....सदियों तक.. मिट्टी के मानव मे.. l
मे सदा.. नया पिंजर ढूँढू... l
कहते है.. लोग.. रूह मरती नहीं.. l
मुझसे पूछो.. की ये.. क्या.. खाख.. जी रही हु.. l
दरबदर.. भटकती हु.. l
मंजिल मिलती नहीं.. l
फरियाद.. करने. को... अर्जी करू.. l
तो.. कलम साही मिलती नहीं.. l
आशियाना ढूँढू.. कही और बसेरा ढूँढू l