सुख कभी कभी मन का एक जाल होता हैं खुद को उलझाए रखने के लिए है और दुख मन को डराने वाले एक भय। वास्तव में भय और दुख एक दूसरे के पर्यायवाची ही होते हैं एक की वजह से दूसरे का जन्म निश्चित है
सुख और दुख वास्तव में एक दूसरे के विपरीत नहीं ,एक ही स्थिति है
मुझे देखकर लोग अक्सर कहते हैं
मुझे क्या दुख होगा ?
हकीकत में दुखी कोई नहीं होता, कुछ लोग हर हालात में ,जो भी हो उनसे उलझे बिना जीए जाते हैं और कुछ हालातों के बहाव को अपनी तरफ मोड़ने की कोशिश में हारते रहते हैं
हारकर उस बहाव का नाम वो दुख रख देते हैं
मैं दुख और सुख से दूर खुद की तलाश में ज्यादा रही इसलिए जोर से हंसना और हालतो को उनके हाल पर रखना मेरे लिए आसान रहा है पर ऐसा नहीं कि मैं दर्द मे नहीं जाती ।
मैं कई बार जब अपने सपने पूरे नहीं कर पाई ,तो लगा मैं बहुत बड़े दुख में हूं फिर सोचा अगर दुनियां का सबसे बड़ा सुख दे भी दिया जाएं, तो मैं उसे भी ऐसे ही जिऊंगी जैसे दुख भोग रही हूं
भोगना नियती है
अपने ही सुख को दुख की तरह काटती हूं।