माह बरस दिन गए गुजर,
राह दिखे न मै जाऊं किधर
माह बरस दिन ....
रुत मिलन की चली गई
मिल न पाए हम तुम
राह में ही मै खड़ी रही
आय न जाने क्यूँ साजन
अंधियारे की रात में
लग गई मुझको सबकी नजर
माह बरस दिन गए गुजर .....
अब के जो साजन तुम आओगे
हम से ना मिल पाओगे
अंखियों से आंसूं बरसेंगे
मन को अपने समझाओगे
अगले जनम हम फिर से मिलेंगे
जाने कहाँ किधर????
जाने कहाँ किधर????
माह बरस दिन .....
सर्वेश ?