Marathi Quote in Blog by मच्छिंद्र माळी

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####Good afternoon !
@मच्छिंद्र माळी औरंगाबाद .
ॐ नमः शिवाय.

*** शिवस्तोञम् ***
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*शिवोहम, शिवोहम, शिवोहम, शिवोहम*
शिवोहम

मनो बुद्धि अहंकार चित्तानी नाहं
नच श्रोत्र जिव्हे नच घ्राण नेत्रे
नच व्योम भूमि न तेजो न वायु
चिदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम ||१||

नच प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायुः
न वा सप्तधातु: नवा पञ्चकोशः
न वाक्पाणिपादौ न च उपस्थ पायुः
चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||२||

नमे द्वेषरागौ नमे लोभ मोहौ
मदों नैव मे नैव मात्सर्यभावः
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्षः
चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||३||

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं
न मंत्रो न तीर्थं न वेदों न यज्ञः
अहम् भोजनं नैव भोज्यम न भोक्ता
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||४||

नमे मृत्युशंका नमे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बंधू: न मित्रं गुरु: नैव शिष्यं
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||५||

अहम् निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम
सदा मे समत्वं न मुक्ति: न बंध:
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||६||

शिवोहम, शिवोहम, शिवोहम, शिवोहम

हिंदी अनुवाद:

मैं मन, बुद्धि, अहंकार और स्मृति नहीं हूँ,
न मैं कान, जिह्वा, नाक और आँख हूँ।
न मैं आकाश, भूमि, तेज और वायु ही हूँ, मैं
चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...

न मैं मुख्य प्राण हूँ और न ही मैं पञ्च प्राणों (प्राण, उदान, अपान, व्यान, समान)
में कोई हूँ, न मैं सप्त धातुओं (त्वचा, मांस, मेद, रक्त, पेशी, अस्थि, मज्जा)
में कोई हूँ और न पञ्च कोशों (अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय, आनंदमय)
में से कोई, न मैं वाणी, हाथ, पैर हूँ और न मैं जननेंद्रिय या गुदा हूँ,
मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...

न मुझमें राग और द्वेष हैं,
न ही लोभ और मोह, न ही मुझमें मद है
न ही ईर्ष्या की भावना, न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं,
मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...

न मैं पुण्य हूँ, न पाप, न सुख और
न दुःख, न मन्त्र, न तीर्थ, न वेद और न यज्ञ, मैं न भोजन हूँ,
न खाया जाने वाला हूँ और न खाने वाला हूँ,
मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...

न मुझे मृत्यु का भय है, न मुझमें जाति का कोई भेद है,
न मेरा कोई पिता ही है, न कोई माता ही है, न मेरा जन्म हुआ है,
न मेरा कोई भाई है, न कोई मित्र, न कोई गुरु ही है और न ही कोई शिष्य,
मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...

मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक,
सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूँ, मैं सदैव समता में स्थित हूँ,
न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...

इति श्रीमद आदिगुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम सम्पूर्णं

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