कहना तो बहुत कुछ था पर लिख के मिटा दिया जो दिल मैं था , लिखते भी तो कैसे जब सुनने के लिए ही तुम नहीं थे कभी पास मेरे । फुर्सत ही नहीं थी कभी तुम्हे की घड़ी दो घड़ी बैठते पास मेरे और हाले दर्द सुनते मेरा । हमने भी फिर कभी कोशिश नहीं की तुम्हे रोकने की , की जो कभी था ही नहीं मेरा उसको पास बुलाने की ।