कविता
क्यों रिश्ते मजबूर हो गए? अपने अपनों से दूर हो गए यह सवाल मन में उठता है नहीं कोई भी हल मिलता है। वक्त के धारे में सब खोये । बंद आंख कर मन में रोये। रिश्ते तो वही है सारे, पर सब के सब बेनूर हो गए। दादी बुआ चाचा ताया, घर में थे रिश्ते बहु तेरे, हिल मिल कर सब रहते थे। आदर प्यार मान मिलते थे, मिल बांट के खा लेते थे। लगा ठठाके जोर जोर से, जख्मों को भी सी लेते थे ।दूर हो गए हमसे रिश्ते ज्योंखिलौने चूर हो गए। बुआ तो ससुराल चली गई, ताया ताई शहर दूसरे। चाचा चाची अलग हो गए, दादा दादी ओल्ड होम में ।खोखले हुए संवेदनाओं से, संवादों से भी दूर हो गए सारे रिश्ते मजबूर हो गए हम अपनों से ही क्रूर हो गए।