English Quote in Poem by Author Mahebub Sonaliya

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नींव टूट जाती है और खड़ा हुआ घर है।
काश तुम समझ सकते क्या रूतों के तेवर है!

लब की मुस्कुराहट तो बस फरेब है प्यारे।
जाने कितने ही सदमें देख मेरे अंदर है।

किस तरह से समझाऊं मैं तुझे मेरी हस्ती
अपना जिसको कहती है वो किराए का घर है!

दिल से शेर निकले जब तो ये सोचता हूँ मैं।
हो न हो मेरे अंदर भी कोई पयम्बर है।

तुम समझना पाओगे दूर से कभी ये भी
कौन है यहाँ ज़ख़्मी, किसके हाथ खंज़र है।

फिर रहा हूँ मैं घर घर इस लिए मेरे 'महबुब'
शान से कहुँ मैं भी ये हसीं मेरा घर है।

महबुब सोनालिया

English Poem by Author Mahebub Sonaliya : 111192309
New bites

@ Hathab beach.

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