आज सुबह की ही बात है। सड़क पर एक फल वाला आवाज़ लगाता हुआ जा रहा था- मीठा मतीरा, मीठा मतीरा...लाल मतीरा।
एक घर की खिड़की से आवाज़ आई - ओ तरबूज वाले, क्या भाव दिया तरबूज?
जो सज्जन भाव पूछ रहे थे, उनका छह वर्षीय बेटा बोल पड़ा - पापा, वॉटरमेलन ले लो न ! मुझे वाटरमेलन खाना है।
मैं ये सब आवाज़ें सुन कर सोच में डूब गया।
हम तीन भाषाओं का सम्मान करते हुए क्षेत्रीय भाषा, राजभाषा और अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में अपनी आने वाली पीढ़ी पर अनावश्यक बोझ डाल रहे हैं किन्तु शायद नई पीढ़ी भाषा के मुद्दे पर हमारा छल छद्म समझने लगी है और अपना रास्ता वो खुद चुनने की ओर बढ़ रही है।