#Kavyotsav_2
#प्रणय
जब निर्मल जल की बुँदे
उसके तन को छूती है
तो वो धीरे से मुस्काती है
कभी शर्माती है
कभी घबराती है
फिर लहर लहर लहरा कर
एक दूसरे में खो जाती है
जब दूध उससे मिलता है
तो नया रूप पाती है
फिर राग नया सजाती है
और उसी के रंग में रग जाती है
फिर उनके प्यार की खुशबू
मेरे घर को महकाती है
मेरी सुबह की चाय और उनकी यादों का साथ
मेरा सुकूँ और ताजगी भरे दिन की शुरुआत