#Kavyotsav_2
#हास्य #व्यंग्य
कवियों के महोत्सव में अक्सर कोई नही आता
क्योंकि सिवाय वक़्त के और कुछ नही जाता
मंद बुद्धि से दिखने वाले कुछ बुद्धि की बात बताएंगे
झूठ मन मे होगा और खुद को सच्चा
दिखलाने के लिए यक दम साधु सा बन जाएंगे
सबसे दबे कुचले दलित सा कहलाने वाले शायर
अक्सर मयखाने सा सच उगल जाएंगे
मैं तो कहता हूं सबसे अहंकारी कवि होता है
जो आम ज़िन्दगी पर कटु व्यंग तो कसता है
लेकिन अपने गिरेबान की कब सोचता है
नेता पर बुरा बोल दिया तो ये नैरेटिव पक्का फिक्स है ताली बज जाएगी
कभी उस तलवार जैसी कलम से खुद पर लिखो तो नानी याद आ जायेगी
अभिनेता पर बोल दिया तो उसके चाहने वाले जोर जोर से चिल्लायेंगे
उसी चिल पौं में हम कवि अपनी रोटी सेंक जायेगे
वो वक़्त था जब कबीर रसखान रहीम और मीरा के एक मुक्तक और शैली पर रब जमी पर आ जाते थे
आज *विश्वास* नही होता जब *जोगी* *पँवार* सरीखे महान भी एक अदद वाहवाही के like के लिए आसमान सा हाथ फैलाएंगे
और तो और उंगली नही दबती like पर *ufff*
कहीं ये फलाने मुझसे आगे तो नही निकल जाएंगे
पहले इज्जत करने से इज्जत मुफ्त मिल जाती थी
खिले चेहरे देख अपनी सूरत पर मुस्कान खिल जाती थी
मगर मित्रों दोस्तों अब digital ऑनलाइन का ज़माना है
like करो अगर किसी अपने समकक्ष से like पाना है