धीस,धीस के श्याही को पन्नो पे,
मेने जिंदगी लीखी ,
लीखी अपनी उम्र सारी पर कंही,
ना ज़िंदगी दीखी |

कंही बचपन खो रहा हे ,
किताबों के बोज तले ,
तो कंही प्यार के इंतज़ार मे,
जवानी हर पल जले ,

नजाने गुनाह हे कोई ये मेरा ,
या हुई कोई गलती ,
या खुदा की ही रेहमत बन मुजे ,
तक्दिर हे काली मीली ,

धीस,धीस के श्याही को पन्नो पे,
मेने जिंदगी लीखी ,
लीखी अपनी उम्र सारी पर कंही,
ना ज़िंदगी दीखी |

Gujarati Poem by Bhagirath Gondaliya : 111162527
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