#KAVYOTSAV -2
कैसे कवि का धरम बेच दूँ
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चौराहे पर क़लम बेच दूँ।
कविताओं का मरम बेच दूँ।
अवसर मिले मुझे भी, पर मैं
कैसे कवि का धरम बेच दूँ।
मादकता के गीत सुनाकर,
श्रोताओं में रस भर डालूँ।
रूप और लावण्य लिखूँ तो,
युवकों को मोहित कर डालूँ।
वाह वाह के स्वर गूंजेंगे,
यदि कुछ गरमा-गरम बेच दूँ।
कविताओं में ग़द्दारों को,
सूली पर चढ़वा देना है।
शत्रु राष्ट्र के आक़ाओं को,
धरती में गड़वा देना है।
ताली ख़ूब बजेंगी यारों,
बस थोड़ा सा भरम बेच दूँ।
कुछ किस्से चटखारे वाले,
और चुटकुले सुनवा दूँगा।
मैं भी हास्य कवि कहला कर,
एक लिफ़ाफ़ा रखवा लूँगा।
कुछ भी मुश्किल नहीं, अगर मैं
इन आँखों की शरम बेच दूँ।
कविता में संदेश न हो तो।
देश, काल, परिवेश न हो तो।
कविता का अभिप्राय भला क्या,
जब तक बात विशेष न हो तो।
मेरे लिए नहीं यह सम्भव,
यही काव्य का करम बेच दूँ।
--बृज राज किशोर 'राहगीर'