Hindi Quote in Poem by Bhawna Saxena

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#KAVYOTSAVA -2

बिछड़ कर डाल से
घूम रहीं है मुक्ति को
समा जाना चाहती है
वो अंक में धरती के
कि चुकाने है
कर्ज़ ज़िन्दगी के।
ठौर मिलता नहीं
बावरी घूमें यहाँ-वहाँ
इस कोने से उस कोने
हवा पर सवार
कभी घुस आती हैं
बिल्डिंग के भीतर
कुचली जाती हैं
भारी बूटों और
पैनी लंबी हील से।
धरती उदास है
कि एक वक्त था जब
शाख से जुदा हुई
सुनहरी पत्तियाँ
मचलती थी जब
उसके वक्ष पर
आलोड़ित होती
मृत्ति कणों में
होतीं उनसे एकाकार
उसका रोम रोम
पुलक जाता था
बरसते थे
आशीष सैकड़ों
जैसे कोई माँ
असीसती है
गलबहियाँ डाले
अपने लाडलों को
आज चीत्कार रही
धरती!!!
कि अपने आँचल के
जिस छोर से
आश्रय दिया उसने
विकास की बेल को
उसने ढाँप दिया है
कोमल मृत्ति कणों को
और सिसक रही है
धरा बेहाल, ओढ़े
सीमेंट-पत्थरों की चादर।

भावना सक्सैना

Hindi Poem by Bhawna Saxena : 111158312
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