#KAVYOTASV --2
नदी किनारे सूखे पेड़ पर कविता ( पेड़ की जुबानी)
मैं प्यासा हूं
नदी है मेरे पास, मैं फिर भी ...
देखो! कितना प्यासा हूं ।
न जड़ हूं ,मैं पूरी तरह से....
न चेतन की परिभाषा हूं।
जैसे कोई नार पिया के..
पास भी होकर पास नहीं।
मैं वीरान में उतना अकेला...
किसी मिलन की आस नहीं।
रूप कुरूप ,न कोई श्रृंगार
न किसी की भी अभिलाषा हूं.!
नदी है मेरे पास , मैं फिर भी
देखो कितना प्यासा हूं ..
मैं निर्धन ..न फल ,न पत्ते..
खग- मृग फिर क्यों आएंगे ?
मतलब की ये दुनिया सारी..
मुझसे कैसे रिझाएंगे ?
मैं हूं! किस्मत का मारा..
अन्दर से बहुत रुआसा हूं।
नदी है मेरे पास,मैं फिर भी
देखो! कितना प्यासा हूं।
तपता सूरज अगन लगाये
प्रिय मिलन को आओ न..
जलती रूह छुअन की प्यासी
लहरों को उछलाओ न..
तुम सींचो, कुछ गुल खिल जाएं
लिए ये मन में आशा हूं।
नदी है मेरे पास, मैं फिर भी
देखो! कितना प्यासा हूं..
न जड़ हूं मैं पूरी तरह से
न चेतन की परिभाषा हूं....
. सीमा शिवहरे "सुमन"
भोपाल मध्यप्रदेश