क्या ज़माना था,
हम तुमे दुवा मैं मांगा करते थे,
तुम हम पर हँसा करते थे,
तुम्हारी हँसी से दिन खुशनुमा होता था,
मन मंदिर या देवता तुमको माना था,
तुम हम पर पागलो का धब्बा दे गए.
प्यार हमारा सच्चा था,
तुमको हम साबित न कर पाए,
तुम मंज़िल,तु जिंदगी का सुना संगीत,
तुम्हारे नापा़क इरादे को हम प्यार समज बैठे,
हम तुमे पागलो की तरह ढूंढते रहे,
तुम हमारे प्यार पैं हँसते रहै.
संमदर को भी हम तेरा पैगाम देते रहे,
तुम हमको दुनिया सें हमारी पहचान
करा गए पल भऱ मैं
वाह प्यार करना तो कोई आपसे सीखे जना़ब,
क्यां कारवा था हमारा जो इतनी बड़ी सजा दे गए
हँसते हँसते हमको दर्द दे गए पलभर मैं,
प्यार भी अजीब ब़ला है पहेले तरसाता है,
बाद मैं चोट दे कर रुला जाता है.
शैमी ओझा लब्ज़......