*राजनीति का कुआँ*
हर कोई गीत अपना गाता चला जा रहा हैं ...
अपनी अपनी राग सुनाता चला जा रहा हैं ।
राजनीति का कुआँ
सब निगलता चला जा रहा हैं .......
आम आदमी ख़ुशहाली के ख़्वाब
सजाता चला जा रहा हैं ।
एक दूसरे पर कटाक्ष करता चला जा रहा हैं
अपने को श्रेस्ठ बताता चला जा रहा हैं ।
जुते,लात,घुसे,झापड़,जड़ता चला जा रहा हैं
आम आदमी इनकी लड़ाई में पिसता चला जा रहा हैं ।
राजनीति का कुआँ
सब निगलता चला जा रहा हैं ........
आम आदमी उम्मीद लगाता चला जा रहा हैं।
रोटी हर कोई अपनी सेकता चला जा रहा हैं
आम आदमी भूखा मरता चला जा रहा हैं ।
राजनीति का कुआँ
सब निगलता चला जा रहा हैं......
मेरा देश बूँद बूँद को तरसता चला जा रहा हैं
पद रिश्तेदारों से भर्ता चला जा रहा हैं
आम आदमी क़तरों में धकें खा रहा हैं
राजनीति का कुआँ
सब उगलता चला जा रहा हैं.......
मेरे देश का युवक
बेरोज़गार होता चला जा रहा हैं।
मर्यादाओं को ताक में रखता चला जा रहा हैं
माँ भारती को शर्मसार करता चला जा रहा हैं
राजनीति का कुआँ ......
सब निगलता चला जा रहा हैं .....
मेरे देश को खोखला करता चला जा रहा हैं।
अपना उल्लू हर कोई सीधा
करता चला जा रहा हैं.......
देश हित को नज़र अन्दाज़ करता चला जा रहा हैं।
राजनीति का कुआँ ........
सब निगलता चला जा रहा हैं
कोई मेरी भी सुध लेगा ......
मेरा देश इंतज़ार करता चला जा रहा हैं।
राजनेता कभी तो अपनी छोड़ देश की सोचेंगे
आम आदमी इसी चाह मे .......
वोट करता चला जा रहा हैं ।
राजनीति का कुआँ सब
निगलता चला जा रहा हैं ...
अम्बिका हेड़ा
संस्थापिका
फ़्लाइइंग बर्ड्स