पता है.......
वो कल कल करती ठण्डी नदी अब सूख गई है, उसकी तलहटी में अब ठंडक नही, सूखी गर्म रेत और चुभते पत्थर रह गए है l तुम्हे याद है जब इसके आस पास हरी घास और वो गुलमोहर के फूल लगे थे, मैं तुम्हारी राह देखा करता था अक्सर गुलमोहर के फूलो से बात करके, उस नदी के ठंडे पानी में पैर डुबाये, तुम्हारे आने से मेरा मन और ये नदी दोनों का हाल एक सा हो जाता था ये कल कल बहने लगती थी, गुलमोहर हवा के झोंको से बात करके कुछ दुआ जैसे फूल बरसा देता था, तुम्हे याद होगा वो सारस का जोड़ा जो अक्सर हमारे पास बैठता था अब वो भी नही दिखता , शायद समय की तपती गर्म हवाओं ने उन्हें भी बिछोड़ की आग में जला दिया हो l
अब मैं तुम्हारा इंतज़ार भी नही करता, सूखी नदी मुझे अक्सर बुलाया करती है पर मै नही जाता क्यूंकि वो हमारी प्रेम भरी यादें अब चुभ जाती हैं मेरे पैरों में और आंखों से रिसता लहू मै नही रोक पाता इसलिए मैं अब अपने घर के कोने में बैठा हर रोज़ यही सोचता हूं एक दिन बेरहम वक्त, बेवक्त बारिश करेगा, नदी में खुशिओं का ठण्डा पानी भरेगा! हमारे मिलन का गुलमोहर फिर खिलेगा, वो सपनों का सारस फिर वही बैठेगा....
उस दिन तुम आओगे और तब हम फिर एक हो जायेंगे l