कोई अंतर नहीं
यूसुफ़ ही तो बन गया दिलीप
कुछ लोग जब नहाने जाते हैं, तो बस गए और नहा कर आ गए। वे आनंद नहीं लेते नहाने का। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो नहाने जाते हैं तो जैसे गुसल में जाकर बैठ ही जाते हैं। घंटों आनंद लेते हैं नहाने का।
यही कारण है कि दिलीप कुमार ने जीवन भर में साठ फिल्मों में काम करने के लिए उन्नीस सौ चवालीस से लेकर उन्नीस सौ अठानवे तक के चौवन साल फ़िल्मी दुनिया में बिताये। हर फिल्म का आनंद जो लेना था।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस आधी सदी से भी ज्यादा लम्बे सफ़र की सबसे बड़ी ख़ास बात क्या रही?
ख़ास बात यह रही, कि जैसे एक म्यान में दो तलवारें नहीं आतीं,वैसे ही इस लम्बे दौर की कई नामी-गिरामी चोटी की हीरोइनें दिलीप साहब के साथ परदे पर नहीं आ सकीं। इसका कारण यही था, कि दिलीप साहब अपनी फिल्म के एक-एक फ्रेम को देखने के कायल रहे। उन्हें ये कभी गवारा न हुआ कि किसी भी दृश्य तक में कोई और उनके सामने ज़रा भी छा जाये।
नर्गिस,मधुबाला, मीना कुमारी, वैजयंतीमाला तक तो बात कोई ख़ास नहीं थी, क्योंकि वे दिलीप कुमार के भी शुरूआती दिन थे। लेकिन उसके बाद नूतन,माला सिन्हा, साधना, आशा पारेख,बबिता, शर्मीला टैगोर,हेमा मालिनी, जया भादुड़ी,जीनत अमान और रेखा उनके साथ नहीं दिखीं।
उनके कैरियर की लगभग एक तिहाई फिल्मों में सायरा बानो ने ही काम किया, जो बाद में उनकी जीवन संगिनी भी बनीं। नूतन को तो वह अपने अपोजिट सोच ही नहीं पाए। शर्मीला टैगोर ने मुश्किल से जाकर एक फिल्म "दास्तान" उनके साथ की,जो भी दोनों के अहम के चलते जैसे-तैसे पूरी हुई। वहीदा रहमान को "गाइड" की ज़बरदस्त सफलता के बाद वे इसलिए बर्दाश्त कर पाए, क्योंकि "राम और श्याम"में उनका डबल रोल था, और महिला-महिमा वहीदा और मुमताज़, दो में बँटी हुई थी। उन्नीस सौ तिरेसठ से उन्नीस सौ उनहत्तर तक लगातार शिखर पर रही साधना के साथ उनकी जोड़ी बनाने की बात कोई निर्माता सोच भी नहीं सका, क्योंकि दिलीप साहब "वो कौन थी,मेरे महबूब, वक़्त,आरज़ू, एक फूल दो माली,राजकुमार और मेरा साया" की नायिका को अपने साथ देख कर सहज नहीं थे।
ये बातें दिलीप की तारीफ हैं या आलोचना, इन पर मत जाइये। उनका सौवां साल भी हम इसी तरह हंसी खुशी से मनाएं!