दम होगा तो !
वे रोज की तरह सुबह खाना खाने बैठे तो थाली को देख कर चौंक गए। रोटी के साथ केवल अचार रखा था। न कोई सब्ज़ी, न दाल, न और कुछ!
थोड़ा इंतजार किया कि शायद कुछ और आता होगा। पर आया तो केवल पानी का गिलास, जिसे रख कर पत्नी वहीं बैठ गई और तमतमा कर बोली- देखो,इस सब्ज़ी वाले को ! मरा ज़रा सी सब्ज़ी के दो सौ रुपए मांग रहा था। मैंने कह दिया, देनी है तो दे, पैसा तो मैं एक भी नहीं दूंगी।
वे अचंभित होकर पत्नी को देखने लगे।
पत्नी बोली- मैंने उसे लाख समझाया कि धरती मां जब फसल मुफ़्त में तुझे देती हैं तो हम पैसे किस बात के दें?
पत्नी की बात अधूरी रह गई क्योंकि तभी बेटे ने घर में प्रवेश किया।
अरे,आज इतनी जल्दी कैसे आ गया? मां ने उससे पूछा।
बेटा बोला- आज मैं ऑफिस गया ही नहीं। बाइक में पेट्रोल लेने गया तो पेट्रोल पम्प वाला पेट्रोल के पैसे मांगने लगा। मैंने कह दिया कि एक कौड़ी नहीं दूंगा। जब पेट्रोल ज़मीन से मुफ़्त मिलता है तो हम से पैसे किस बात के? ये तो लूट है लूट!
वे बौखलाए हुए मां बेटे को एक साथ देखते रहे।
तभी दरवाज़ा ठेल कर बेटी ने कमरे में प्रवेश किया। मां बोली- अरे आज अभी तक कोचिंग में नहीं गई।
बिटिया ने पलटकर जवाब दिया- अब मैं नहीं जाऊंगी। वो सर फ़ीस मांगते हैं। मैं पैसे किस बात के दूं? एक रुपया भी नहीं दूंगी। अगर मेरे डॉक्टर बनने के सपने में दम होगा तो मैं ऐसे ही बन कर दिखाऊंगी।
...पर बेटी, ये तू क्या कह रही है...वे आगे कुछ बोल नहीं पाए। केवल अचार से खाई सूखी रोटी गले में अटकने सी लगी।
उनकी समझ में नहीं आया कि आज ये अचानक उनके परिवार को क्या हो गया है,कैसी बातें कर रहे हैं सब?
वे खाना खाकर, हाथ धोकर सीधे अपने कमरे में आए और अपने उस प्रकाशक को फोन मिलाया जो पिछले छह महीने से उनकी कविता की किताब की पांडुलिपि ले जाने में आनाकानी कर रहा था।
वे फोन पर बोले- हां प्रकाशजी, आप किताब ले जाइए आज, और हां वो पांडुलिपि के साथ चैक कितने का काटना है?
उधर से आवाज़ आई- कविताएं तो आपकी वाकई दम दार हैं... पच्चीस हज़ार का कर दीजिए सर!