दो रोटी दो वक़्त मिले ना मिले
उपहार मुस्कुराहटों के मिले ज़रूर
दो गज ज़मीं भले ना मिल सके कभी
सुंकुं की नींद कुछ पल आए जरूर
भटकता रहूं बेसहारा भले में,
किसी को आसरा दिलाऊं जरूर..
रहम को भटकता रहूं दरबदर मैं
दया का सागर मुझमें रहे जरूर..
भूखा भले ख़ाक हो जाऊं किसी दिन
किसी की भूख़ में मिटाऊं जरूर..
ऐसा इंसा बना देना खुदा तू मुझे
किसी नेकी के काम मैं आऊं जरूर..