शैतान की आंत जैसी
कोयला खदानों की
अरझुराई सुरंगों में
अंधेरा एकदम ठोस हो जाता है
जिसे भेद नहीं पाती
कैप-लैम्प की पीली रोशनी
आंखे फाड-फाड़़ कर देखता खनिक
खतरा ज्यादा तो है नहीं
बारूदी विस्फोट से टूटे
कोयला के टुकड़े जैसे
बेडौल चेहरे खनिकों के
बदन से पसीना चुहचुहाता
फेफड़ों में भर जाती कोयले की धूल
जिंदगी का एक दिन और
कट जाए माँ काली
एक दिन और सुरक्षित निकल आएं
शैतान की चिपिचपी आंतों से
(अशोक भौमिक साहब की कोयला खदान श्रृंखला से प्रभावित होकर)