मित्रोआज मंगलवार है, पवनपुत्र हनुमानजी महाराजका दिन है, आजके पावन दिवसका आंरभ हनुमानजी महाराजके गुणगान से करते हैं।
*प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥
भावार्थ:-मैं पवनकुमार श्री हनुमान्जीको प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वनको भस्म करनेके लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञानकी घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवनमें धनुष-बाण धारण किए श्रीरामजी निवास करते हैं॥
आजके दिन का आरम्भ भगवान् श्रीरामजी के परमभक्त श्री हनुमानजी महाराजके किसी प्रसंगसे करते हैं, श्री हनुमानजी जनेऊ कौन सी पहनने थे? "काँधे मूँज जनेऊ साजे" एक मूँज घास है जो खुरखुरी और तीखी होती है, पहले तपस्वी मूँजका जनेऊ धारण करते थे।
शायद इसीलिये धारण करते थे कि हमेशा हमारे कन्धे को खुजलाती रहे हमको विस्मरण न हो जायें, जैसे-समाज ऋण, देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण ये विस्मृत न हो जायें इसलिये हमारी गर्दन को हर समय खुजलाती रहे, श्री हनुमानजी महाराज भी मूँजका जनेऊ इसलिये धारण करते थेकि श्री हनुमानजी ब्रह्मचर्यके प्रतीक है, तपस्वीके प्रतीक है।
ब्रह्मचारीके भी दो अर्थ है, एक,तो जिसने शुक्रको स्खलन नहीं होने दिया, यह ब्रह्मचर्यका एक श्रेष्ठ सवरूप है, ऐसे बहुतसे पहलवान हैं जिन्होंने अपने शुक्रका स्खलन नहीं होने दिया, लेकिन उन्हें कोई श्रेष्ठ ब्रह्मचारी नहीं माने जाते, ब्रह्मचर्यका अर्थ है जिसकी चर्या ब्रह्म जैसी हो, जो चौबीस घण्टे,प्रतिपल,प्रतिक्षण ब्रह्मकी चर्या में डूबा है?
हम ब्रह्म की चर्चा तो करते हैं लेकिन हम ब्रह्म की चर्यामें नहीं डूबते, आप वैष्णवोंको पतित होते बहुत कम सुनेंगे, ज्ञानीका हो सकता है लेकिन भक्तका पतन नहीं होता है, भगवान श्रीकृष्णजीने गीता में भी घोषणा की है, कि मेरे भक्तका पतन नहीं होता, इसलिये वैष्णवोंका भी पतन नहीं होता, क्यों? क्योंकि वैष्णव साधु सदैव भगवानकी सेवामें रहते हैं और जो चौबीस घण्टे सेवामें रत रहेगा वह विकृत नहीं हो सकता, उसका कभी पतन नहीं हो सकता।
प्रातःकालसे वैष्णव प्रभुकी सेवामें कथा,जागरण,मंगला आरती करता है,स्नान कराना,श्रृंगार करना,फिर प्रात:कालकी आरती करनी,भोग लगाना,शयन कराना, उत्थापन कराना,फिर संध्या आरती करता है,यानी प्रात:कालसे लेकर एक क्षण भी इधर-उधर नहीं चौबीस घण्टे मन भगवान् की सेवा में और जो प्रतिपल भगवानके सेवामें है तो मन में पवित्रता ही तो होगी,शुद्धता ही तो होगी,शुद्ध और पवित्र मन में कभी विकार प्रवेश ही नहीं कर सकता,इसलिये वैष्णवों को ब्रह्मचर्य कहा गया है।
इसीको भजन कहा है भजन कोई क्रिया नही,भजन कोई नौकरी नहीं है, भजन एक जीवन जीनेकी शैली है,भजन जीवन की चर्या है,उठते-बैठते,सोते-जागते,चलते-फिरते भजन करना माने भगवानमें डूबे रहना,भजन करना माने भगवान् में जगना,उठना,बैठना,नहाना,खाना,चलना,पीना भगवान् के अतिरिक्त कुछ और है ही नहीं,हर श्वांस में उसी की धडकन,उसी की यादें,भगवान् सुमिरन में बने रहे, किसी ने बहुत अच्छा गाया है!
हर धड़कनमें प्यास है तैरौ, श्वासोंमें तेरी खुशबू है।
इस धरतीसे उस अम्बर तक,मेरी नजरमें तू ही तू है।
प्यार ये टूटे ना, तू मुझसे रूठो ना,साथ ये छूटे कभी ना।
तेरे बिना भी क्या जीना,प्रभु रे तेरे बिना भी क्या जीना।
फूलोंमें कलियो में,सपनों की गलियों में।
तेरे बिना कुछ कहीं ना, तेरे बिना भी क्या जीना।
तेरे बिना भी क्या जीना, प्रभु रे, तेरे बिना भी क्या जीना।
हरेकृष्ण हरेकृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरेहरे।
हरेराम हरेराम, राम-राम हरेहरे।।
??जयजय श्रीराम??
??जयजय श्रीकृष्ण??