तू साजन हो मीत मेरे मन के,
ये बोल है प्यार कर पागलपन के,
मैं सोलह श्रृंगार कर तैयार खड़ी,
द्वार नज़र गड़ाये सावन आगमन के,
मयूर नाच रहा बरसात के प्यार में,
बादल बरसे धरा पर अमृत बन के,
तेज़ बारिश से आस टूटी आने की,
दीप भी अब बुझ रहे मेरे आंगन के,
"पागल" कब आओगे बहोत देर हुई,
सावन बीत रहा है बिन साजन के।
✍?"पागल"✍?