फ़िर अधिकतर प्रोडक्शन हाउस किसी लेखक को रखने की जगह अपना स्टोरी विभाग रखने लगे। उसमें कई लोग होते, जिनमें कुछ तो केवल विश्व साहित्य पढ़ कर उसमें से काम की बातें खोजने का काम ही करते थे। कुछ आपस में मिल कर कहानी को आगे बढ़ाने के लिए चर्चा और लेखन में जुट जाते। मैंने वहां कई बड़े लेखकों को अपने सहायकों को सीन बांटते भी देखा।