घटना
आज का परिवेश क्या जालिम दुनिया
डर लगता है क्या करे ये सूर्या
बचपन मे काफी ईमानदारी से जिया
पढ़ाई भी ईमानदारी से किया
समय के साथ ईमानदारी से जिया
उसको लगा परिश्रम किया
धोखे-बाजी उसे कभी न सुहाया
तभी तो सूर्या ईमानदार कहलाया
परीक्षा में मेहनत से रैंक लाता
कभी भी वो किसी को गलत नही ठहराता
गलती होता तो अपने अंदर झांकता
अंतरात्मा को टटोलता फिर कुछ बोलता
बड़ो को इज्जत करता छोटो को प्यार
किसी के प्रति न कोई द्वेष न कोई करार
उसकी इस मासूमियत को लोग समझे उसकी कमजोरी
ये तो थी कुदरत की दी हुई उसके लिए एक तिजोरी
कुदरत ने दी किसी को क्रूरता और किसी को ईमानदारी
पर कौन समझे कुदरत की ये वाणी
उसने पढ़ाई किया तो दिखया ईमानदारी
ओ करता था बी-टेक कयू की उसे बनाना था
एक मिसाल दिखाना था ईमानदारी
सायद उनके इस लक्ष्य को ईश्वर की न थी मंजूरी
एक साल पूरा किया और बाकी रह गयी अधूरी
पढ़ाई में तेज-तर्रार पर उसे कहा पता था कि ईमानदारी आज के परिवेश जीने नही देती पूरी।
छूट गया बी-टेक सपने रह गए अधूरे
वापस आया अपने घर रहने लगा बिल्कुल अकेले
कम करता बाते सोचता पुरानी राते
घर वालो को उसकी उदासी न सुहाती देखके