रूस यात्रा में हमने विमानतल के अधिकारियों के साथ खूब आंख मिचौली खेली। वे कहते थे कि उड़ान में ज़्यादा सामान साथ में नहीं ले जाया जा सकता। लेकिन हमने फ़िर भी यूपी बिहार और राजस्थान को संग में ले लिया। और वजन तो इतना कि मत पूछो। शंभू बादल साहब की एक - एक कविता इतनी वजनदार कि बस। और कविता भी कोई एक दो नहीं, सैंकड़ों की तादाद में। वे अधिकारी लोग रोकते भी कैसे,कविता बैग में नहीं, दिमाग़ में रखी थीं।
रामकृष्ण राजपूत के लेख ऐसे कि एक एक पुरस्कृत। और पुरस्कृत भी लाखों रुपए के पुरस्कार से। अब लगालो आप खुद ही अनुमान उनके वज़न का।
राठी जी के पास तो अंबार था कहानियों का। न उनका कोई तौल न मोल। बेशकीमती और वजनी असबाब।अब अधिकारी करें भी क्या?